रविवार, 2 नवंबर 2014

सियाचिन के बर्फीले रेगिस्तान से 21 साल बाद मिला जवान का शव!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

दुनिया के सबसे ऊंचे रण के नाम से विख्यात सियाचिन ग्लेशियर में अपनी सीमाआें की रक्षा करना कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है यह किसी से भी छुपा नहीं है। यहां तैनात सेना के रणबांकुरों के सामने दुश्मन की गोली नहीं बल्कि सियाचिन का पल-पल बदलता कुख्यात मौसम सामने खड़ी साक्षात मौत से कम नहीं होता। यहां तैनाती के बाद जो सकुशल अपने घर लौटे वो किश्मतवाला और जो ना लौट सके, उसके आखिरी दर्शनों के लिए उसके अपनों का इतंजार कितना लंबा होगा कोई नहीं जानता।

सेना के सूत्रों ने शुक्रवार को ऐसे ही एक जवान के बारे में बताया जिसे थलसेना की 12मद्रास के गश्ती दल ने 12 अक्टूबर उनकी मौत के 21 साल बाद सियाचिन ग्‍लेशियर में ढूंढ निकाला। महाराष्ट के सांगली जिले का रहने वाला यह जवान हवलदार पी.वी.पाटिल 4 मराठा लाइट इंफेंट्री से ताल्लुक रखते थे। इनकी मौत 27 फरवरी 1993 को हुई थी। इस दर्दनाक हादसे से पहले हवलदार पी.वी.पाटिल की तैनाती 17 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरी सियाचिन ग्लेशियर के बिला पोस्ट में हुई थी। तैनाती के बाद अपने नियमित गश्‍त के दौरान हेलिकॉप्टरों द्वारा गिराए जाने वाले खाने-पीने के सामान को उठाते वक्त सामने से आए बर्फ के पहाड़ के नीचे दबकर इनकी मौत हुई। इनकी मृत्यु के कुछ समय बाद सेना ने हवलदार को मृत घोषित कर दिया था।

हवलदार टी.पी.पाटिल को 12मद्रास की एक लिंक पेट्रोल दस्ते ने ढूंढ निकाला। पेट्रोल के दौरान बर्फ के नीचे दबा हवलदार का हाथ निकला हुआ दिखाई दिया। इसके बाद हवलदार के शव को निकालने का काम शुरू हुआ। मौसम में आ रहे लगातार बदलावों की वजह से शरीर का ज्यादातर हिस्सा खराब हो चुका था। कुछ भाग काला पड़ गया था और कुछ कंकाल में तब्दील हो गया। लेकिन उसकी जेब से दो चिट्टियां मिली हैं। इसमें एक चिट्टी हवलदार उनके किसी रिश्तेदार की थी और दूसरी हवलदार द्वारा करायी गई मेडिकल जांच की रिपोर्ट की कॉपी थी जिसकी वजह से ही उनकी पहचान हो सकी। महाराष्ट में हवलदार पी.वी.पाटिल के गांव में उनका काफी पहले स्मारक बना दिया गया था। उनके परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं। इनका एक भाई भी है जो जिनकी इस तरह के हादसे में केंद्रीय सियाचिन ग्लेशियर में मौत हुई है लेकिन उनका शव अभी तक नहीं मिला है। जवान का संबंध 6मराठा लाइट इंफेंट्री से है।

गौरतलब है कि कुछ महीने पहले इसी सियाचिन ग्लेशियर से हवलदार गया प्रसाद का शव 18 साल बाद सेना ने खोज निकाला था। जिसके बाद शव को परिजनों को सौंप दिया गया और पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें