कविता जोशी.नई दिल्ली
भारतीय वायुसेना के अग्रणी पंक्ति के लड़ाकू विमान सुखोई-30एमकेआई के मंगलवार को पुणे में दुर्घटनाग्रस्त होने के मामले की एक पखवाड़े के भीतर रिर्पोट आ जाएगी जिसमें हादसे से जुड़े तमाम कारणों का खुलासा हो जाएगा। हरिभूमि की पड़ताल में मिली जानकारी के मुताबिक यह हादसा तकनीकी कारणों की वजह से हुआ है। वायुसेना द्वारा गठित कोर्ट आॅफ इंक्वारी (सीओआई) यानि जांच प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने वाले फलाइट डेटा रिकॉर्डर(एफडीआर) और कॉकपिट वाइस रिकॉर्डर (सीवीआर) जैसे दोनों उपकरण मिल गए हैं। हादसे में इन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ है,जिससे इस मामले की जांच-पड़ताल करने में वायुसेना को ज्यादा समय नहीं लगेगा। लगभग दो सप्ताह में रिर्पोट आ जाएगी। उधर वायुसेना की ओर से इस हादसे के बाद देश के अलग-अलग ठिकानों पर तैनात सुखोई विमानों के बेड़े पर उड़ान भरने पर फिलहाल कोई रोक नहीं लगाई गई है।
वायुसेना के सूत्रों का कहना है कि किसी भी विमान हादसे के बाद आगे की जांच में एफडीआर और सीवीआर जैसे उपकरण बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। एफडीआर में विमान के उड़ान भरने के बाद से लेकर इसके रनवे पर लैंड करने तक की हर छोटी-बड़ी गतिविधि रिकॉर्ड होती है। इसके अलावा सीवीआर कॉकपिट में होने वाले हर क्रियाक्लाप को रिकॉर्ड करता है, जिसमें पायलट और सह-पायलट की बातचीत भी शामिल होती है।
गौरतलब है कि वर्ष 2009 से लेकर अब तक 5 सुखोई विमान हादसे का शिकार हुए हैं। पहला हादसा 30 अप्रैल 2009 को राजस्थान के पोखरण रीजन में हुआ जिसमें एक पायलट की मौत हो गई थी। हादसे के बाद वायुसेना ने सुखोई विमानों के बेड़े पर तीन सप्ताह तक उड़ान भरने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 30 नवंबर 2009 को जैसलमेर से 40 किमी. की दूरी पर स्थित जाटेगांव में एक और सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इस दौरान भी सुखोई के पूरे बेड़े पर हादसे की जांच पूरी होने तक उड़ान भरने पर रोक लगा दी गई। इसके बाद 13 दिसंबर 2011 को भी वायुसेना का एक अन्य सुखोई विमान पुणे से 20 किमी. दूर वाड़ी भोलाई गांव के पास हादसे का शिकार हुआ। इसके बाद 19 फरवरी 2013 को राजस्थान की पोखरण रेंज में आयरन फिस्ट अभ्यास के पूर्वाभ्यास के दौरान एक सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इसके बाद मंगलवार को पुणे के पास सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है।
भारतीय वायुसेना के अग्रणी पंक्ति के लड़ाकू विमान सुखोई-30एमकेआई के मंगलवार को पुणे में दुर्घटनाग्रस्त होने के मामले की एक पखवाड़े के भीतर रिर्पोट आ जाएगी जिसमें हादसे से जुड़े तमाम कारणों का खुलासा हो जाएगा। हरिभूमि की पड़ताल में मिली जानकारी के मुताबिक यह हादसा तकनीकी कारणों की वजह से हुआ है। वायुसेना द्वारा गठित कोर्ट आॅफ इंक्वारी (सीओआई) यानि जांच प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाने वाले फलाइट डेटा रिकॉर्डर(एफडीआर) और कॉकपिट वाइस रिकॉर्डर (सीवीआर) जैसे दोनों उपकरण मिल गए हैं। हादसे में इन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ है,जिससे इस मामले की जांच-पड़ताल करने में वायुसेना को ज्यादा समय नहीं लगेगा। लगभग दो सप्ताह में रिर्पोट आ जाएगी। उधर वायुसेना की ओर से इस हादसे के बाद देश के अलग-अलग ठिकानों पर तैनात सुखोई विमानों के बेड़े पर उड़ान भरने पर फिलहाल कोई रोक नहीं लगाई गई है।
वायुसेना के सूत्रों का कहना है कि किसी भी विमान हादसे के बाद आगे की जांच में एफडीआर और सीवीआर जैसे उपकरण बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। एफडीआर में विमान के उड़ान भरने के बाद से लेकर इसके रनवे पर लैंड करने तक की हर छोटी-बड़ी गतिविधि रिकॉर्ड होती है। इसके अलावा सीवीआर कॉकपिट में होने वाले हर क्रियाक्लाप को रिकॉर्ड करता है, जिसमें पायलट और सह-पायलट की बातचीत भी शामिल होती है।
गौरतलब है कि वर्ष 2009 से लेकर अब तक 5 सुखोई विमान हादसे का शिकार हुए हैं। पहला हादसा 30 अप्रैल 2009 को राजस्थान के पोखरण रीजन में हुआ जिसमें एक पायलट की मौत हो गई थी। हादसे के बाद वायुसेना ने सुखोई विमानों के बेड़े पर तीन सप्ताह तक उड़ान भरने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद 30 नवंबर 2009 को जैसलमेर से 40 किमी. की दूरी पर स्थित जाटेगांव में एक और सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इस दौरान भी सुखोई के पूरे बेड़े पर हादसे की जांच पूरी होने तक उड़ान भरने पर रोक लगा दी गई। इसके बाद 13 दिसंबर 2011 को भी वायुसेना का एक अन्य सुखोई विमान पुणे से 20 किमी. दूर वाड़ी भोलाई गांव के पास हादसे का शिकार हुआ। इसके बाद 19 फरवरी 2013 को राजस्थान की पोखरण रेंज में आयरन फिस्ट अभ्यास के पूर्वाभ्यास के दौरान एक सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। इसके बाद मंगलवार को पुणे के पास सुखोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है।
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