रविवार, 16 नवंबर 2014

जल, थल, नभ हर तरफ से रहना होगा अलर्ट

कविता जोशी
दक्षिण-एशिया में तेजी से बदल रहे भू-राजनैतिक परिदृश्य ने भारत के सामने अपनी सीमाओं की सुरक्षा को हर स्तर पर मजबूत बनाए रखने की चुनौती खड़ी कर दी है। दुश्मन यह जानता है कि भारत में दहश्त फैलाने की सीधी और आसान कड़ी जम्मू-कश्मीर से होकर गुजरती है। यहां चलने वाली एक गोली हर हिंदुस्तानी के खून में उबाल लाने के लिए काफी है। राज्य में कुछ रोज बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में पाक सेना समेत आतंकियों को चुनाव के दौरान सूबे समेत देश के बाकी इलाकों की आबोहवा में जहर घोलने का सुनहरा अवसर मिल गया है, जिसे वो किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहते। पाक फौज और आतंकियों की खीज के पीछे बीते 7 महीनों से भारत की सत्ता पर काबिज हुई नई सरकार की रणनीति भी है, जिसमें उसने बंदूक के साए में कोई भी बात करने से साफ इंकार कर दिया है। इसकी ताजातरीन मिसाल बीते अगस्त महीने में पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द करके पेश की गई। इससे बौखलाए पाक ने जम्मू- कश्मीर सीमा पर कई दिनों तक गोलीबारी की,कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्‍ट की दहलीज पर ले जाकर उसका अंतरराष्टीयकरण किया लेकिन उसके साथ खिसयानी बिल्ली खंबा नौचे वाले किस्से के अलावा और कुछ नहीं हुआ। इसका बदला लेने के लिए पाकिस्तानी सेना ने अपने रेंजरों और पाक समर्थित आतंकियों को जम्मू-कश्मीर से लेकर भारत के बाकी इलाकों में हिंसा की चिंगारी भड़काने का हुक्म सुना दिया है। पाक फौज ने इसका आगाज जम्मू-कश्मीर से लगी 984 किमी.लंबी भारत-पाक सीमा के हर कौने पर बंदूकों और मोटार्रों से गोले बरसाकर करना शुरू कर दिया है।

राज्य में कई जगहों पर आतंक का नया पर्याय बने आईएसआईएस को समर्थन देते युवाओं के प्रदर्शन और इसके बाद कई राज्यों से युवाआें का आईएसआईएस संगठन में भर्ती के लिए इराक और सीरिया की ओर रूख करना पाक के लिए खुशी तो भारत सरकार के माथे पर चिंता की लंकीरें खींचने के लिए काफी हैं। खौफ पैदा करने वाली यह घटनाएं यहीं नहीं रूकी बल्कि यह सिलसिला देश की बाकी हिस्सों में भी निबार्ध गति से जारी है। भारत के पूर्वी तट पर बसे कोलकात्ता बंदरगाह से अक्टूबर में नौसेना सप्ताह के सामान्य कार्यक्रम के लिए वहां पहुंचे नौसेना के दो जंगी युद्धपोतों को तालिबान समर्थित आतंकी हमले की आशंका के चलते तुरंत हटा लिया गया, कोलकात्ता में ही बांग्लादेश सीमा से सटे सुदूर इलाकोंं में बांग्लादेश समर्थित आतंकियों द्वारा बम बनाए जाने की घटनाआें का बड़ा खुलासा भी सुरक्षा एजेंसियों समेत सरकार के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है। असम से लेकर पूर्वोत्तर में जारी हिंसक घअनाओं में इजाफा भी सिरदर्द बढ़ा रहा है। यहां हमें यह भी याद रखना होगा कि करीब छह साल पहले 2008 में देश की संप्रभुता को तार-तार करने वाला बड़ा आतंकवादी हमला मुंबई के रास्ते जल मार्ग से किया गया था। इन सबके बीच अफगानिस्तान में बदल रहे हालात भी भारत की सीमाओं के बाहर बन रही गंभीर स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं। इस साल के अंत तक वहां से अमेरिका समर्थित नाटो देशों की सेनाओं की वापसी होनी है, जिसके बाद अफगानिस्तान की धरती पर सालों से अपनी लड़ाका प्रवृतियों के लिए बदनाम तालिबान आतंकवादियों के रडार पर सबसे पहले कश्मीर और फिर पूरा भारत आ जाएगा। यह मसला भारतीय सेना से लेकर सरकार के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। सामरिक मामलोंं के जानकार कहते हैं कि ओसामा बिन लादेन के खिलाफ करीब 80 हजार नाटो देशों फौज अफगानिस्तान में डेरा डाले हुए थी जिसमें से दिसंबर 2014 तक 60 हजार फौज की वापसी की जाएगी और बाकी बची 40 हजार फौज अफगानिस्तान और उसकी राजधानी काबुल के आसपास मौजूद सामरिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए कुछ समय तक फिलहाल वहीं तैनात रहेगी।

कुछ दिन पहले जमात-उद-दावा का मुखिया और मुंबई आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड हाफिज सईद राजस्थान सीमा से सटे पाक के गांवों से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चुनावों से पहले हिंसा बढ़ाने की आतंकियों से अपील करता नजर आया। कश्मीर में 25 नवंबर से चुनाव होने हैं और उससे पहले आतंकी और पाक फौज का आतंक का नापाक खेल शुरू हो चुका है जिसका मकसद राज्य के माहौल को खौफजदा करके शांतिपूर्ण चुनाव ना होने देना और जम्मू-कश्मीर की आवाम को चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने से रोकना है। सीमा पर सीजफायर उल्लंधन और चुनावों से पहले हिंसात्मक धटनाएं बढ़ाने की तस्दीक यह आंकड़ें आसानी से कर देते हैं। इनमें इस वर्ष पाकिस्तानी सेना की ओर से जम्मू-कश्मीर में पड़ने वाली 924 किमी. लंबी सीमा पर जनवरी से लेकर अक्टूबर तक 236 बार सीजफायर समझौते का उल्लंधन कर भारतीय सेनाआें की चौकियों समेत घनी आबादी वाले आरएस पुरा, सांबा, तंगदार, केरन, नौगाम, उरी, पूंछ, मेंढर के इलाकों पर भारी भरकम र्मोटार और गोलियां बरसाई गई। इससे बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन करना पड़ा। गोलीबारी की आड़ में आतंकियों की घुसपैठ भी जम्मू-कश्मीर में जारी थी। खुफिया ब्यूरो की रिर्पोट की माने तो राज्य में चुनाव से पहले करीब 194 विदेशी आतंकी और 268 स्थानीय आतंकी मौजूद हैं। आतंकियों द्वारा हिंसा की करीब 46 घटनाएं हो चुकी हैं।

सेना ने अपने अभियान में 79 आतंकवादियों को मार गिराया है। चुनाव से पहले राज्य का माहौल खराब करने में आतंकवादियों ने बीते 12 नवंबर को कुलगाम से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी गुलाम हसन जरगर को रात में उनके घर पहुंचने पर जानलेवा हमला किया जिसमें वो बाल बाल बचे। आतंकियों की धरपकड़ के लिए सेना ने इसके अगले दिन 13 नवंबर से कुलगाम में अभियान चला रहा है। इतना ही नहीं कुलगाम के आसपास के गांवों में आतंकियों ने ग्रामीणों से चुनाव में वोट ना डालने के धमकी भरे पोस्टर भी चस्पा कर दिए हैं जिन्हें सेना ने हटा दिया है लेकिन लोगों में खौफ पैदा करने के लिए यह काफी है। इन सबके उलट 3 नवंबर को अमृतसर में अटारी-वाघा सीमा पर ध्वज उतारने (फलैग लोवरिंग) के समारोह के दौरान वाघा बार्डर पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें पाक के निर्दोंष 61 नागरिक मारे गए। हमले में 10 महिलाएं, 8 बच्चे और 3 सुरक्षाकर्मी भी शामिल थे। कश्मीर समेत देश के बाकी हिस्सों से धधक रही आतंक की इस चिंगारी के बीच कश्मीर समेत जल, नभ और थल की सुरक्षा को चाक-चौबंद बनाए रखना बेहद जरूरी है जिससे आतंकियों के मंसूबे किसी भी हाल में कामयाब ना हो सके।

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