रविवार, 30 नवंबर 2014

तो जर्मन राजदूत के सत्संग में नहीं गई ईरानी!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

केंद्रीय विद्यालयों से जर्मन को तीसरी भाषा के रूप में ना पढ़ाए जाने के सरकार के फै सले के बाद दोनों देशों के बीच इसे लेकर काफी गहमागहमी बनी हुई है। पहले जर्मन चांसलर एजेंला मार्केल ने जी-20 सम्मेलन के दौरान इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष उठाया और अब यहां भारत में जर्मनी के राजदूत माइकल स्टेनर इसे लेकर जद्दोजहद करने में जुटे हैं। इसकी छोटी सी बानगी जर्मन राजदूत द्वारा शुक्रवार शाम ‘सत्संग’ का कार्यक्रम आयोजित करके भी प्रस्तुत की। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने शिरकत नहीं की। मंत्रालय में उनके कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि मंत्री को इस बाबत कोई निमंत्रण पत्र प्राप्त नहीं हुआ है।

यहां बता दें कि बीते बुधवार को केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी भाषा के रूप में जर्मन की पढ़ाई को तत्काल रोकने के फैसले की जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने दी थी। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने जर्मन भाषा को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने से संबंधित समझौते का नवीकरण नहीं किया है। सरकार जर्मन की जगह पर तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत भाषा को शामिल करना चाहती है। देश में मौजूद करीब एक हजार केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा 6 से 8वीं तक तीसरी भाषा के तौर पर जर्मन भाषा पढ़ाई जा रही है। लेकिन अब नई सरकार ने जर्मन की जगह पर संस्कृत की पढ़ाई कराना चाहती है। मानव संसाधन राज्य मंत्री ने सदन कहा कि वर्ष 2011 में केंद्रीय विद्यालय संगठन और गोइथ इंस्ट्टीट्यूट (मैक्स मूलर भवन) के बीच जर्मन भाषा की पढ़ाई को लेकर जो समझौता हुआ था उसके कुछ बिंदु भारत की वर्ष 1968 की राष्टीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्म्युले से लेकर 2005 के नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क के हिसाब से भी अनुचित है। यह समझौता पुरानी शिक्षा नीति के आदेशों का उल्लंधन करता है।

उधर जर्मन राजदूत का कहना है कि मैंने 28 नवंबर को अपने जन्मदिवस के दिन सत्संग का आयोजन करने का निर्णय बहुत पहले लिया था। यह उस समय की बात है जब मई में नई सरकार का गठन भी नहीं हुआ था। इस कार्यक्रम के लिए हमने कई केंद्रीय मंत्रियों को आमंत्रित किया है। मैं इसमें एक-एक करके नामों का खुलासा नहीं कर सकता। इस आयोजन का मकसद जर्मन भाषा की पढ़ाई पर केंद्र द्वारा रोक लगाने के मसले को आगे बढ़ाने के लिए मौके तशालने से जुड़ा हुआ नहीं है।

गौरतलब है कि केंद्रीय विद्यालयों में बीते तीन वर्षों (2012 से 2015 तक) के दौरान कुल 50 हजार 978 बच्चे जर्मन भाषा की पढ़ाई कर रहे हैं। यह संख्या बीते शैक्षणिक सत्र 2013-14 में 36 हजार 728 थी और उससे पहले 2012-13 में 17 हजार 772 थी। मंत्री ने कहा कि जर्मन भाषा पढ़ाए जाने को लेकर हाईकोर्ट में संस्कृत संगठन ने 2013 में याचिका दायर की है। बीते महीने 27 अक्टूबर को हुई केंद्रीय विद्यालय संगठन के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर (बीओजी) की बैठक से पहले भी इस मसले पर चर्चा हुई थी। इसमें बीओजी ने यह तय किया कि जर्मन भाषा को संस्कृत के विकल्प के तौर पर पढ़ाया जाए। विदेशी भाषा को छठी से लेकर आठवीं कक्षा के बच्चों को अतिरिक्त विषय या रूचि वाली भाषा के तौर पर पढ़ाया जाए लेकिन तीसरी भाषा के तौर पर ना पढ़ाया जाए। इससे जर्मन भाषा पढ़ने वाले युवाआें पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो कि वैश्विक आधार पर दुनिया के सामने खुद को पेश करने की तैयारी कर रहे हैं। जर्मन के अलावा कुछ केंद्रीय विद्यालयों में चीनी भाषा (मैंड्रिन) को भी हॉबी क्लासेज के तौर पर पढ़ाया जा रहा है।

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