गुरुवार, 13 नवंबर 2014

मच्छल एकांउटर पर अंतिम फैसला आने में समय लगेगा!

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

बीते तीन नवंबर को जम्मू-कश्मीर के छत्तरगाम में सेना द्वारा दो निर्दोष युवकों को मारने की घटना का आक्रोश अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि राज्य में सेना द्वारा किए गए एक पुराने एकांउटर का मामला गरमा गया है। चार साल पहले 2010 में राज्य के मच्छल के रहने वाले तीन युवकों का सेना ने पाकिस्तानी आतंकवादी बताकर एकांउटर किया था जिसपर सैन्य अदालत (समरी जनरल कोर्ट-मार्शल) ने सेना के 2 अधिकारियों और तीन जवानों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा की सिफारिश की है। गौरतलब है कि छत्तरगाम आॅपरेशन के बाद राज्य में सेना के खिलाफ हुए कड़े विरोध-प्रदर्शन के बाद जम्मू-कश्मीर स्थित सेना की उत्तरी कमांड के मुखिया लेफिटनेंट जनरल डी.एस.हुड्डा ने इस आॅपरेशन को लेकर खेद प्रकृट किया था और दो निर्दोष युवकों की मौत के मामले की नैतिक जिम्मेदारी ली थी।

यहां सेना मुख्यालय में मौजूद सेना के सूत्रों ने कहा कि एकांउटर के बाद हुई जांच में सेना के पांच लोगों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा की सिफारिश की है। लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला आने में कुछ समय और लगेगा। उम्रकैद की सिफारिश को सेना की उत्तरी कमांड के प्रमुख लेंफिनेंट जनरल डी.एस.हुड्डा के पास अंतिम निर्णय लेने के लिए भेजा जाएगा। सूत्र बताते हैं कि सेना को इस मामले में अंतिम फैसला लेने में करीब दो महीने का समय और लग सकता है। दरअसल कमांड के मुखिया को यह अधिकार होता है कि वो सैन्य अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रख सकते हैं या फिर उसे कम भी सकते हैं। सेना के जिन पांच कर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है उनमें कर्नल दिनेश पठानिया, कैप्टन उपेंद्र, हवलदार देवेंद्र, लांसनायक लखमी,लांसनायक अरून कुमार शामिल हैं।

2010 में जब यह एकांउटर हुआ था तब सेना ने कहा कि उसने मच्छल सेक्टर में तीन आतंकवादियों को मारा है जो कि भारत-पाक नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार करके राज्य में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे। बाद में इन लोगों की पहचान शहजाद अहमद खान, रियाज अहमद लोन और मोहम्मद शफी लोन के रूप में हुई थी। यह तीनों बारामूला जिले के निवासी थे। मारे गए लोगों के परिजनों ने दावा किया था कि सेना तीनों युवकों को नौकरी और धन का प्रलोभन देकर सीमावर्ती क्षेत्र में ले गई थी और बाद में उन्हें आतंकवादी बताकर मारा डाला।

घटना के बाद कश्मीर घाटी में व्यापक प्रदर्शन हुए थे, जो 2010 में अक्टूबर के मध्य तक चले थे। मच्छल घटना के बाद के पांच महीनों में सेना की कार्रवाई में करीब 120 लोग मारे गए थे।

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