शनिवार, 8 नवंबर 2014

पूर्वोत्तर सीमा पर जारी रहेगा सड़कों का निर्माण कार्य: जेटली

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

चीन के कड़े विरोध के बावजूद भारत ने एक बार फिर शुक्रवार को पूर्वोत्तर से लगे अपने सीमाई इलाकों में सड़क निर्माण कार्य को हर हाल में पूरी करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है। यहां शुक्रवार को हुई रक्षा मामलों की संसद की मंत्रणा समिति की पहली बैठक में यह निर्णय लिया गया जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने की। बैठक में रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारे पड़ोसी चीन द्वारा सीमा से लगे इलाकों में संस्थागत ढांचे का जिस तरह से निर्माण किया गया है। चीन की सामरिक हकीकत को पहचानते हुए हम भी अपने इलाके में निर्माण को करने के लिए तमाम जरूरी कदम उठाएंगे।

गौरतलब है कि भारत द्वारा हाल में अरूणाचल-प्रदेश में करीब 2 हजार किमी. लंबी सड़कों के जाल बिछाने की घोषणा का चीन द्वारा कड़ा विरोध दर्ज कराया गया था। उसका कहना था कि अरूणाचल उसके तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (टीएआर) का दक्षिणी हिस्सा है, जिसकी वजह से यह इलाका विवादित है। ऐसे में भारत यहां सीमा के करीब कोई निर्माण कार्य नहीं कर सकता। भारत का कहना है कि अरूणाचल उसका अभिन्न अंग है इसलिए उसे यहां निर्माण करने के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

रक्षा मंत्री ने कहा कि इस मामले पर सरकार द्वारा कुछ अहम क दम उठाए गए हैं, जिसकी वजह से सड़क निर्माण कार्य को लेकर आने वाली आधिकारिक स्तर की बाधाओं को दूर किया जा सके। इसमें परियोजना से जुड़ी पर्यावरण एवं वनीय मंजूरी से लेकर उच्च श्रेणी के तकनीकी उपकरणों की कमी का मसला शामिल है। भारत-चीन सीमा पर पूर्वोत्तर में होने वाले इस निर्माण कार्य के लिए सरकार ने 3 हजार 12 किमी. की 73 सड़कों का चयन किया है। इसमें से 61 सड़कों को जिनकी लंबाई 3 हजार 410 किमी. है सीमा सड़क सगठन (बीआरओ) को बनाना है। बीआरओ ने चरणबद्ध ढंग से 17 सड़कों के 590 किमी. लंबे भाग पर निर्माण कार्य पूरा कर लिया है। सेना ने 2 हजार किमी. लंबी 22 सामरिक सड़कों का प्राथमिक्ता के आधार पर खाका खींचा है। बीआरओ ही इनका निर्माण करेगा और मंत्रालय निर्माण कार्य के समय पर पूरा होने के लिए उसकी पूरी निगरानी करेगा।

बैठक में मौजूद बीआरओ के महानिदेशक लेफिटनेंट जनरल ए.टी.परनाइक ने कहा कि निर्माण कार्य को पूरा करने में पर्यावरण-वनीय मंजूरी, भौगोलिक लिहाज से मुश्किल इलाका, सड़कों का जटिल आकार, कठिन मौसम जैसी चुनौतियां मुख्य हैं। कार्य की रफतार धीमा पड़ने के पीछे निर्माण कार्य में लगे उपकरणों का अन्य जगहों पर लगातार इस्तेमालशामिल है। इसमें लेह में 2010 में आई बाढ़, 2011 में सिक्किम में आए भूकंप, उत्तराखंड में 2013 में आई बाढ़ और जम्मू-कश्मीर में 2014 में आई बाढ़ मुख्य हैं। इनसे निपटने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ लगातार समन्वय बिठाया जा रहा है। इसके अलावा बीआरओ के आधुनिकीकरण की कवायद भी चल रही है।

बैठक में मौजूद सांसदों ने 1960 से सड़क निर्माण कार्य में लगे बीआरओ के कार्यों की सराहना की। उन्होंने एकमत से कहा कि बीआरओ को सरकार के बजट कटौती जैसे अभियान से दूर रखा जाना चाहिए। बैठक में सांसदों में चौधरी बाबूलाल, विजय शाम्पला, मलिकार्जुन खड़गे, राजकुमार सिंह, प्रो.सौगत राय, राजीव चंद्रशेखर, डॉ.महेंद्र प्रसाद, टी.आर.रंगराजन, एच.के.दुआ शामिल थे। मंत्रालय की ओर से रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, रक्षा सचिव आर.के.माथुर, रक्षा उत्पादन सचिव जी.मोहन.कुमार, रक्षा सचिव (वित्त) वंदना श्रीवास्तव शामिल हुए।

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