मंगलवार, 4 नवंबर 2014

अरूणाचल में भारत की सड़क से बिगड़ता चीनी मिजाज!

कविता जोशी

भारत का अपने दो निकट प्रतिद्वंद्वी देशों चीन और पाकिस्तान के साथ अंतरराष्टीय सीमाओं के स्पष्ट निर्धारण ना होने की वजह से दशकों से विवाद चल रहा है। पश्चिम में जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर में अरूणाचल-प्रदेश तक गदर ही गदर है। पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) का निर्धारण होने जाने के बावजूद भी एलओसी से लेकर आईबी तक फैला समूचा जम्मू-कश्मीर गोलियों और मोटार्रों की दिल दहला देने वाली आवाज से गूंजता रहता है, जिससे एलओसी के पास बसे सघन आबादी वाले इलाकों में रहने वाले लोगों का जीना दुभर हो गया है। वहीं पूर्वोत्तर में प्रत्यक्ष नजर आने वाली खामोशी के पीछे चीन का भारत पर डाला जाने वाला अप्रत्याशित दबाव और वास्तवित नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कहीं भी ड्रैगन की पीएलए सेना की घुसपैठ दोनों के बीच बनी इस तनातनी का गाहे-बगाहे साक्षात कराती रहती है। ताजा मामला अरूणाचल में भारत द्वारा हालिया घोषित लगभग 2 हजार किमी. लंबे सड़क मार्ग के निर्माण को लेकर चीन द्वारा उठाई जा रही आपत्ति से पैदा हुआ है।

चीन कहता है कि अरूणाचल-प्रदेश उसके तिब्बत क्षेत्र का दक्षिणा हिस्सा है। ऐसे में चीन का यह तर्क कि अरूणाचल उसका भाग है, विवादित इलाका घोषित करता है। जबकि भारत 1962 की भारत-चीन की लड़ाई और उससे पहले से यह स्पष्ट कर चुका है कि अरूणाचल-प्रदेश उसका अभिन्न अंग है और इस इलाके को लेकर भारत में किसी तरह का संदेह नहीं है। ऐसे में चीन, अरूणाचल के सुदूर इलाके में भारत द्वारा बनायी जा रही सड़क का लाख विरोध करे लेकिन भारत को उसे बनाने में कोई शंका नहीं है। पांच महीने पहले देश की सत्ता पर काबिज हुई नई एनडीए सरकार द्वारा की गई हालिया सड़क निर्माण की घोषण से चीन लाख तिलमिलाए लेकिन भारत के लिए पूर्वोत्तर के इस पिछड़े इलाके के विकास से और यहां के बाशिंदो को एक आम भारतीय होने का अहसास कराने के लिहाज से भी यह बेहद मुफीद साबित होगा। उधर प्रस्तावित सड़क मार्ग के बन जाने से अरूणाचल में प्रवेश के लिए पश्चिमी सीमा यानि असम के रास्तों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा बल्कि अब सीधे इन सड़क मार्गों के जरिए अरूणाचल-प्रदेश में प्रवेश किया जा सकेगा। मिसाल के तौर पर अभी तेजपुर से तवांग और डिब्रूगढ़ से वलांग के रास्ते को ही पश्चिमी से पूर्व का प्रवेश द्वार कहा जाता है लेकिन अब इस सड़क मार्ग के बन जाने से पूर्व से ही पूर्व में प्रवेश का रास्ता खुलेगा। इसके अलावा इन इलाकों में रहने वाले लोगों को ऊंचे पहाड़ी इलाकों में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों को निचले इलाके के बाजारों में बेचने और असम तक पहुंचाने में भी सुविधा होगी जिससे उनका जीवीकोपार्जन आसान बनेगा।

भारत के चीन के साथ सीमा विवाद को बड़े पैमाने पर देखें तो लद्दाख में पश्चिमी सीमा से लेकर उत्तर-पूर्व में अरूणाचल-प्रदेश तक अंतरराष्टीय सीमा का स्पष्ट विभाजन नहीं है। दोनों जगहों पर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि एलएसी को मानने से इंकार करता है। कुछ समय पहले सेंट्रल सेक्टर यानि हिमाचल-प्रदेश और उत्तराखंड के इलाके में दोनों सेनाओं के बीच सीमाओं को लेकर नक्शों का आदान-प्रदान किया गया था लेकिन अभी तक उस पर धरातल पर कोई आधिकारिक निर्णय नहीं हुआ है। अरूणाचल में हालत और भी खराब है क्योंकि वहां अग्रेंजों (ब्रिटिश काल) के समय में खींची गई और देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 62 की लड़ाई के बाद प्रस्तावित मैकमोहन लाइन (पूर्वोत्तर में अंतरराष्टीय सीमा) को भी चीन मानने से साफ इंकार करता है। भारत द्वारा सड़क बनाने के ताजा ऐलान के बाद चीन की ओर से किए जा रहे विरोध के पीछे तर्क यह दिए जा रहे हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब सड़क या इस तरह का कोई भी निर्माण नहीं किया जा सकता। क्योंकि यह विवादित इलाका है जब तक सीमाआें का स्पष्ट विभाजन ना हो जाए तब तक भारत यहां किसी तरह का निर्माण नहीं कर सकता। लेकिन सच्चाई यह है कि चीन ने अपने प्रभुत्व वाले इलाके में एलएसी के करीब बड़े पैमाने पर सड़क और रेल नेटवर्क का निर्माण किया है। यह निर्माण आज का नहीं है बल्कि दशकों से चला आ रहा है।

भारत से लगी सीमाआें पर अपने इलाके में दशकों पहले रेल-रोड़ जैसी ढांचागत सुविधाआें का निर्माण चीन की विस्तारवादी नीति को बल देने में काफी मददगार रहा लेकिन दूसरी ओर भारत की 1962 की लड़ाई से पहले की सोच कि अंतरराष्टीय सीमाओं के करीब ढांचागत सुविधाओं का विकास करने से युद्ध की स्थिति में दुश्मन को हमारे इलाके में आसानी से घुसने में कामयाब हो जाएगा जैसे तर्कों ने भारत को चीन से इस मामले में काफी पिछड़ा दिया। लेकिन इतिहास में की गई भूलों से सबक लेकर अब वर्तमान में भारत पश्चिम से लेकर पूर्वोंत्तर की अपनी सीमाओं के पास सड़क और रेल नेटवर्क का तेजी से विकास कर रहा है। लेकिन सीमाओं की चाक-चौबंदी के साथ ही मौजूद दौर में बदली हुई परिस्थितियों में विकास की नई परिभाषा गढ़ने के लिए हमें अपने अन्य हितों को भी ध्यान में रखना हितकारी होगा।

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