रविवार, 2 नवंबर 2014

पूर्वोत्तर में बुलंदी की नई इबारत लिखेगी वायुसेना!

कविता जोशी.नई दिल्ली

भारत अपने निकट प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ दो सेक्टरों पर अपनी सीमाएं साझा करता है। इसका एक हिस्सा सिक्किम-अरूणाचल-प्रदेश से लगा उत्तर-पूर्व का इलाका है और दूसरा भाग लेह-लद्दाख से लगी हुई पश्चिमी सीमा है। वायुसेना इन दोनों युद्धक मोर्चों पर मौजूद अपने महत्वपूर्ण सामारिक ठिकानों का बीते कुछ वर्षों से उन्नतीकरण और आधुनिकीकरण करने में लगी हुई है। उत्तर-पूर्व में कार्य क ी प्रगति काफी तेजी से आगे बढ़ रही है, जिसकी पुष्टि हाल में वायुसेना दिवस से पूर्व में आयोजित वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में वायुसेना प्रमुख एयरचीफ मार्शल अरूप राहा भी कर चुके हैं। वायुसेना प्रमुख ने इस बाबत हरिभूमि द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में कहा कि लेह-लद्दाख में लगी पश्चिमी सीमा पर कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं लेकिन उत्तर-पूर्व में वायुसेना के 6 एडवांस लैडिंग ग्राउंडस (एएलजी) के उन्नतीकरण और आधुनिकीकरण का काम अगले वर्ष के अंत तक पूरा हो जाएगा। वायुसेना के इन 6 अहम ठिकानों में तूतिंग, मैचुका, पसीघाट, एलांग, वलांग, जीरो जैसे एडवांस लैडिंग ग्राउंड और तवांग (हेलीपैड) मुख्य हैं।

एयरचीफ मार्शल अरूप राहा ने कहा कि यह वायुसेना के वो महत्वपूर्ण ठिकाने हैं जो सामरिक और रणनीतिक दोनों लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। एक बार इन जगहों पर निर्माण कार्य पूरा जाने के बाद वायुसेना इन ठिकानों पर अपने फिक्स्ड विंग एयरक्राμट्स (सी-130जे, सी-17 ग्लोबमास्टर, सुखाई-30एमकेआई) की मदद से आसानी से रणनीतिक अभियान का आगाज कर सकती है। इसके अलावा किसी भी आपात स्थिति में इन जगहों पर सैनिकों की टुकड़ी समेत अन्य जरूरी साजो-सामान को भी पहुंचाया जा सकता है।

गौरतलब है कि 6 एएलजी के उन्नतीकरण की परियोजना करीब 1 हजार 723 करोड़ रुपए की है और यह अपनी तय समय सीमा से 4 साल पीछे चलरही है। प्रधानमंत्री के उत्तर-पूर्व को दिए गए विशेष पैकेज के हिसाब से इस काम को वर्ष 2008 में पूरा हो जाना चाहिए था। वायुसेना के मुख्य श्रेणी लड़ाकू विमानों की सूची में सबसे अग्रणी लड़ाकू विमान सुखोई-30एमकेआई उत्तर-पूर्व के छाबुआ, तेजपुर और हाशीमारा में पहले ही तैनात किए जा चुके हैं। 

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