रविवार, 30 नवंबर 2014

फेल नहीं करने की नीति की समीक्षा करेगा कैब?

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

देश में शिक्षा के विषय में फैसला करने वाली सर्वोच्च संस्था केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (कैब) की शिक्षा मामलों की समिति ने प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को फेल ना करने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) की समीक्षा करने की सिफारिश की है। अगर समिति की इस सिफारिश को कैब स्वीकार कर लेता है तो प्राथमिक स्कूलों में आगामी शैक्षणिक सत्र (2015-16) से आठवीं कक्षा तक के बच्चों का स्वत: पास होना मुश्किल हो जाएगा। कैब इस सिफारिश पर संसद के शीतकालीन सत्र के बाद होने वाली बैठक में फैसला करेगा।

दरअसल यूपीए सरकार में शिक्षा मंत्री रहे कपिल सिब्बल के कार्यकाल में 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू किया गया। इसमें 8वीं कक्षा तक बच्चों को फेल ना करने की नीति बनाई गई। इसका नतीजा यह देखने को मिला कि कई स्कूलों में तीसरी कक्षा के छात्र पहली की किताबें तक नहीं पढ़ पा रहे और जोड़-घटा के साघारण सवालों को हल करने में उनके पसीने छूटने लगे हैं।

नई शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने अगले वर्ष की शुरूआत तक राष्टीय शिक्षा नीति को अमलीजामा पहनाने से पहले स्कूल और कॉलेजों के बच्चों के साथ एक बैठक कर उनके सुझाव लिए। बच्चों ने कहा कि स्वत: पास हो जाने की प्रक्रिया से शिक्षा को लेकर बेफिक्री और आरामतलबी की भावना आती है। बच्चों ने ईरानी से दसवीं कक्षा में बोर्ड फिर से शुरू करने की भी मांग की। इन मसलों पर कैब की अगली बैठक में निर्णय किया जा सकता है। कर्नाटक समेत कुछ राज्यों ने अगले शैक्षणिक सत्र से कक्षा परीक्षा लेने की बात कही है।

गौरतलब है कि हरियाणा की पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल की अध्यक्षता में एक उप-समिति को फेल ना करने की नीति पर विचार करने का दायित्व सौंपा गया था। यह पहल अभिभावकों, शिक्षा और कई वर्गों द्वारा कक्षा परीक्षा फिर से शुरू करने की मांग के साथ ही सामने आई थी। मानव संसाधन मंत्रालय का तर्क है कि इस प्रणाली की समीक्षा करने की सिफारिश की है। मानव संसाधन विकास उपेंद्र कुशवाहा ने लोकसभा को उप समिति की सिफारिश के बारे में सूचित किया है। समिति ने स्मृति ईरानी को कुछ समय पहले अपनी रिपोर्ट सौंपी है। उप-समिति द्वारा मूल्यांकन किए गए 20 राज्यों ने इस व्यवस्था का विरोध किया और कहा कि इसके प्रावधान अपने उद्देश्यों को हासिल करने में विफल रहे हैं। इससे खासकर 10वीं कक्षा में पहुंचने वाले छात्रों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। उप-समिति ने एचआरडी मंत्रालय की संसदीय समिति की सिफारिशों पर भी विचार किया है।

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