बुधवार, 3 दिसंबर 2014

द.चीन सागर में बढ़ते चीनी दबदबे से निपटने में भारत असक्षम?

कविता जोशी.नई दिल्ली

प्रशांत महासागर के दो महत्वपूर्ण छोरों दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर पर बीते कुछ समय से चीन की गतिविधियां बढ़ गई हैं। द.चीन सागर पर वो अपना अकेला प्रभुत्व जता रहा है और दूसरे छोर पर सेंकाकू द्वीपों पर अधिकार को लेकर उसका जापान के साथ गतिरोध चल रहा है। यह दोनों इलाके भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि द.चीन सागर से होकर एशिया प्रशांत मार्ग पर भारत का 55 फीसदी समुद्री व्यापार होता है। ऐसे में इन जगहों पर स्थिति बिगड़ने के मद्देनजर नौसेना ने क्या अतिरिक्त तैयारियां की हैंं का बड़ा सवाल खड़ा होता है? नौसेना की प्रशांत महासागर में चल रही समुद्री गतिविधियों पर नजर है। लेकिन किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए घटना से पूर्व में उसकी कोई तैयारी नहीं है। इससे उक्त इलाके को लेकर नौसेना की गंभीरता और सक्षमता को लेकर सवालिया निशान उठना स्वभाविक है।

आपात स्थिति पर रखेंगे नजर
यहां राजधानी में बुधवार को नौसेना दिवस के पूर्व में आयोजित वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में जब हरिभूमि ने इस बाबत नौसेनाप्रमुख एडमिरल आर.के.धोवन से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि चीन के हिसाब से दक्षिणी चीन सागर, चीनी समुद्र का इलाका है। जहां तक बात हमारे सामरिक-व्यापारिक हितों की है। भारत हमेशा से ही अंतरराष्टीय व्यापार में समुद्री मार्गों पर स्वतंत्र आवाजाही के सिद्धांत (फ्रीडम आॅफ नेवीगेशन) का पक्षधर रहा है। अगर इन इलाकों में तनाव बढ़ता है तो भारत के व्यापारिक-सामरिक जहाजों की स्वतंत्र आवाजाही भी प्रभावित होगी। एडमिरल धोवन ने कहा अगर दोनों जगहों पर चीन की वजह से स्थिति तनावपूर्ण बनती है तो हम उस पर नजर रखेंगे। चीन की बढ़ रही गतिविधियों को लेकर सतर्कता के आधार पर
किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए अपनी समुद्री सीमा या उससे बाहर नौसेना ने फिलहाल किसी जंगी जहाज या अन्य रक्षात्मक उपकरणों की तैनाती नहीं की है। यहां बता दें कि चीन प्रशांत महासागर से लेकर हिंद महासागर और उसके आसपास भी अपनी गतिविधियां लगातार बढ़ा रहा है। हाल में उसने श्रीलंका के तट पर अपने जंगी जहाज और पनडुब्बी को पानी से समुद्री सतह पर ला दिया था। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान,नेपाल में भी चीन तेजी से अपना प्रभाव बढ़ाने में लगा हुआ है जो कि भारत के लिए खतरे की घंटे है।

द. और पूर्वी चीन सागर का सामरिक महत्व
द.चीन सागर में मौजूद सभी द्वीपों पर चीन ने नौ लधु रेखाएं (नाइन डैश) खींचकर अपनी अकेली संप्रभुत्ता घोषित कर दी है। इस इलाके से दुनिया का एक तिहाई और भारत का 55 फीसदी व्यापार होता है। चिंता की बात यह है कि इस इलाके पर बु्रनेई, फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम भी अपना दावा करते हैं। चीन की बढ़ती गतिविधियों की वजह से इन देशों ने अपने नौसैन्य बजट और ताकत में इजाफा करना शुरू कर दिया है जो कि अपने आप में चिंतनीय है। वियतनाम के फूखान्ह बेसिन में भारत की ओएनजीसी विदेश लिमिटेड कंपनी तेल शोधन के काम में लगी हुई है। इस काम पर कंपनी ने 11 करोड़ डॉलर की राशि खर्च कर दी है लेकिन चीन द्वारा इस इलाके को विशेष आर्थिक जोन घोषित किए जाने की वजह से जो विवाद खड़ा हुआ है उसकी वजह
से यहां अभी तक कोई काम शुरू नहीं हो पाया है। पूर्वी चीन सागर पर सेंकाकू द्वीपों पर अधिकार को लेकर चीन-जापान के साथ उलझा हुआ है, जिससे भारत के व्यापारिक हित प्रभावित हो रहे हैं। बदलते वैश्विक सामरिक गठजोड़ में भारत अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसे में पूर्वी चीन सागर पर विवाद उपजने के दौरान भारत का पक्ष खासी महत्ता रखेगा। इसे लेकर भारत द्वारा जापान का विरोध ना किए जाने की संभावनाएं भी बनती हुई नजर आ रही हैं।

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