रविवार, 18 जनवरी 2015

चौबीसों घंटे काम में जुटे मोदी कैबिनेट के सिपहसालार

कविता जोशी.नई दिल्ली
यूं तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जबरदस्त कार्यक्षमता की वजह से लोगों के बीच में बेहद चर्चित हैं। रोजाना सुबह उठकर काम की शुरूआत करने के बाद उनके देररात तक काम में जुटे रहने की खबरें आए दिन मीडिया की सुर्खियों में रहती है। प्रशासनिक कामकाज को लेकर कुछ ऐसा ही गुरु मंत्र पीएम मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल तमाम सिपहसालारों यानि मंत्रियों को भी दिया है। उनका दो-टूक कहना है कि जो मंत्री काम कर परफॉर्म करेगा वो ही चलेगा दूसरा कोई नहीं।

मोदी गुरुमंत्र की राह पर कैबिनेट मंत्री
प्रधानमंत्री के काम के प्रति इस समपर्ण को लेकर भाजपा सरकार के मंत्री बेहद संजीदा हैं। कुछ तो सुबह-सुबह ही अपने कार्यालय पहुंचकर जरूरी कामकाज संभाल लेते हैं तो कुछ विदेशों मेंं भी चौबीसों घंटे काम मेंं जुटे रहने के इस गुरुमंत्र को याद रखना नहीं भूलते। जी हां यहां हम बात कर रहे हैं केंद्र सरकार की केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की। इनके बारे में शास्त्री भवन स्थित मंत्रालय के गलियारों में चर्चा है कि मंत्री जी तो सुबह साढ़े आठ बजे ही दफ्तर आ जाती हैं और कामकाज शुरू कर देती हैं और रात में करीब साढ़े दस बजे तक आॅफिस छोड़ती हैं। उनकी वजह से मंत्रालय के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को भी सुबह-सुबह ही दफ्तर भागना पड़ रहा है। भला यह कैसे संभव है कि मंत्री करे काम और बाबू करे आराम।

कुछ इसी तर्ज पर मोदी कैबिनेट के एक और मंत्री भी चौबीसों घंटे काम में जुटे हुए हैं और वो हैं कें द्रीय पर्यावरण-वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर। उनका क्या कहना वो तो देश ही नहीं विदेशी धरती पर भी समर्पित भाव से काम करने के मोदी गुरुमंत्र को सार्थक करने में जुटे हुए दिखाई दिए। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी सुबह-सुबह साढ़े आठ बजे साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय के अपने कार्यालय में पहुंचकर कामकाज शुरू कर देते हैं। इसकी वजह से सशस्त्र सेनाआें के तीनों प्रमुखों (जनरल दलबीर सिंह सुहाग, एयरचीफ मार्शल अरुप राहा, एडमिरल आर.के.धोवन) सहित मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी करीब 9 बजे कार्यालय तक पहुंच जाते हैं।

पर्यावरण मंत्री के कामकाज का विवरण
बीते दिनों राजधानी में महिला पत्रकारों से मुखातिब हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जलवायु परिवर्तन पर लीमा में हुए हालिया अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के बारे में बताते हुए कहा कि मैं वहां कैंप साइट पर बने इंडिया दμतर में सारा समय कामकाज निपटाने में जुटा रहता था। मैंने कोई साइट सीन भी नहीं किया। कई बार तो मेरे अधिकारी मुझसे कहते भी थे कि आप तो यहां से बाहर ही नहीं निकलते हैं, बाकी देशों के मंत्री तो दिन में दो-तीन बार यहां आते-जाते रहते हैं। इसके जवाब मैं अधिकारियों से कहता कि मैं तो यहां पर पूरे दिनों शिविर करूंगा और आपको भी कही जाने नहीं दूंगा। अपनी कतर्व्यनिष्ठा को प्राथमिक्ता देते हुए जावड़ेकर बताते हैं कि मैं लीमा में सुबह 9 बजे से कामकाज शुरू कर देता था और रात में कभी 12 तो कभी 2 बजे तक भी काम निपटाता रहा।

जलवायु परिवर्तन पर सार्क से जुड़ा भारत
काम के प्रति इसी समर्पण की वजह से अपने शिविर में मैंने 40 द्विपक्षीय बैठकें की, 5 बैठकें सार्क देशों के साथ और 5 एलएमडीसी देशों के साथ हुई। इस तरह से भारत को जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर दुनिया के सभी देशों के साथ मिलने और उनके विचार जानने का मौका मिला। इससे भविष्य में हम कई मसलों पर वैश्विक आमराय बनाने में कामयाब हो सकते हैं।

लीमा सम्मेलन में अतिसक्रिय भारत
लीमा सम्मेलन में भारत अतिसक्रिय नजर आया। वहां भारत की ओर से सकारात्मक्ता के साथ अपनी बातें दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के सामने रखी गई। सम्मेलन की शुरूआत में ही भारत ने यह साफ कर दिया कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन में विकसित देशों का सबसे ज्यादा योगदान है इसलिए इसमेंं कमी लाने के लिए उन्हें ही सवार्धिक योगदान करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन पर गठित प्राचीन और ऐतिहासिक क्योटो संधि की समयसीमा समाप्त हो चुकी है। लेकिन उसके और यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन आॅन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर ही सभी देशों को आगे बढ़ने की सलाह भारत ने दी। 

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