शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

देसी धुनों से सराबोर रहा ‘बीटिंग द रिट्रीट’ का नजारा

हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली

वीर भारत, छन्ना बिलौरी, जय जनम भूमि और अतुल्य भारत ये वो देसी स्वरलहरियां यानि धुनें हैं, जिनसे गुरुवार को हुए ‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह के दौरान रायसीना हिल्स से लेकर विजय चौक के आसपास का इलाका गूंजायमान हो उठा। दूसरे शब्दों में कहे तो इस बार समारोह का पूरा फ्लेवर भारतीय धुनों से सराबोर नजर आया। इन देसी धुनों को पहली बार समारोह में शामिल किया गया है। कार्यक्रम में बजाई गई कुल 23 प्रस्तुतियों में से 20 देसी तड़का लिए हुए थीं।

15 बैंड्स-18 पाइप्स-ड्रम्स
रक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 29 जनवरी को हुए बीटिंग द रिट्रीट समारोह के साथ बीते चार दिनों (26 जनवरी से लेकर 29 तक) से चल रहे गणतंत्र दिवस परेड समारोह के रंगारंग कार्यक्रमों का समापन हो गया। इस वर्ष रिट्रीट में 15 मिलिट्री बैंड्स, 18 पाइप्स-ड्रम्स बैंड्स, रेजीमेंटल सेंटरों, बटालियनों ने समारोह में भाग लिया। इसके अलावा भारतीय वायुसेना, नौसेना के बैंडों ने समारोह में अलग से अपनी खास प्रस्तुति भी दी।

धुनों से गुंजायमान रहा आसमां
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निवास रायसीना हिल्स से लेकर उसकी तलहटी में स्थित विजय चौक के आस-पास का नजारा कार्यक्रम के दौरान देशी धुनों की स्वरलहरियों से गुंजायमान रहा। समारोह में बजाई गई अन्य धुनों में देशों का सरताज भारत, केटीज वेडिंग, पाइपर ओ ड्रमंड, गोरखा ब्रिगेड, ओसियन स्पेलेंडर, ब्लू फील्ड, बैटल आॅफ द स्काई, आनंदलोक, डेशिंग देस, μलाइंग स्टार, ग्लोरियस इंडिया, भूपाल, इंडियन सोल्जर्स, हाथरोई, सलाम टू द सोल्जर्स, गिरि राज, ड्रमर्स कॉल, एबाइडेड विद मी और सारे जहां जैसे धुनों को बजाया गया।

मेजर गिरिश ने की अगुवाई
रिट्रीट समारोह की अगुवाई प्रिसिंपल कडक्टर मेजर गिरिश कुमार यू ने की। मिलिट्री बैंड की अगुवाई (कंडक्टर) सूबेदार सुरेश कुमार और नौसेना और वायुसेना के बैंड्स कमांडर मास्टर चीफ पेट्टी आॅफिसर (म्यूजिशियन-1) रमेश चंद थे। बगलर्स ने सूबेदार प्रभाकरन और पाइप्स-ड्रम्स ने सूबेदार मित्रदेव की अगुवाई में अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से सबका मन मोह लिया।

सुर्यास्त के साथ युद्ध खात्मे का जयघोष
रिट्रीट समारोह की जब 1950 में शुरूआत हुई तो उस वक्त भारतीय सेना में मेजर रॉबर्ट ने इस तरह से बैंड्स का प्रदर्शन करने का अनोखा विचार सामने रखा। दूसरे शब्दों में इसे सदियों पुरानी सैन्य परंपराआें के साथ भी जोड़कर देखा जाता है, जिसमें युद्ध के समापन के बाद जब सेनाएं अपनी बैरकों में वापस लौटती हैं तक ठीक सुर्यास्त के वक्त ध्वज उतारकर युद्ध के समापन की आधिकारिक घोषणा होती हैं और साथ ही रिट्रीट की धुनें बजाकर सेना के लाव-लशकर की युद्धकाल की थकान को दूर करने की कोशिश की जाती है।

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